हरि का नाम सुमर नर प्यारे, कभी भुलाना ना चाहिये | Bhajan - 104 | Sundar Atma Kaya Bhajan | Hari Ka Naam Sumar Nar Pyare....
|| क्या नहीं करना चाहिये ||
हरि का नाम सुमर नर प्यारे, कभी भुलाना ना चाहिये ।
पाकर मानुष तन दुनिया में, मुफ्त गंवाना ना चाहिये ।।टेर।।
झूठ कपट और पाप कर्म से, धन को कमाना ना चाहिये ।
पुण्य पुर्बले से आता हो, तो ठुकराना ना चाहिये ।।१।।
पर नारी से कभी भुलाकर, प्रीत लगाना ना चाहिये ।
दुर्जन नर को अपने पास में, कभी बैठाना ना चाहिये ।।२।।
देकर के विश्वास किसी को, फिर हट जाना ना चाहिये ।
सच्चे मित्र से मन की कोई, बात छिपाना ना चाहिये ।।३।।
अपने घर का भेद कभी, दुश्मन को बताना ना चाहिये ।
आमद से पैसे का ज्यादा, खर्च बढ़ाना ना चाहिये ।।४।।
नये नये पंथों की बातों में, फँस जाना ना चाहिये ।
अपना पुरूषार्थ करने में, दिल शरमाना ना चाहिये ।।५।।
पुण्य कर्म करके पीछे, मन में पछताना ना चाहिये ।
पाप कर्म की तरफ कभी, मन को ललचाना ना चाहिये ।।६।।
जहाँ न आदर होय कभी, उस घर में जाना ना चाहिये ।
अपने घर में आवे उसके, दिल को दुखाना ना चाहिये ।।७।।
बिन मालिक के हुकुम किसी, वस्तु को उठाना ना चाहिये ।
घर के झगड़े के कारण, राज सभा में जाना ना चाहिये ।।८।।
कर सत्संग विचार सदा, दिल से विसराना ना चाहिये ।
ब्रह्मानन्द को पाकर फिर, भव में भरमाना ना चाहिये ।।९।।
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