दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार | Bhajan 127 | Duniya Se Main Haraa to Aaya Tere Dwaar ...
(तर्ज : सावन का महीना ...)
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ पे भी जो हारा, कहाँ जाऊंगा सरकार॥सुख में कभी ना तेरी, याद है आई,
दुःख में सांवरिया तुमसे, प्रीत लगाई,
सारा दोष है मेरा, में करता हूँ स्वीकार,
यहाँ पे भी जो हारा, कहाँ जाऊंगा सरकार॥
मेरा तो क्या है में तो, पहले से हारा,
तुमसे ही पूछेगा ये, संसार सारा,
डूब गई क्यों नैया, तेरे रहते खेवनहार,
यहाँ पे भी जो हारा, कहाँ जाऊंगा सरकार॥
सब कुछ गवाया बस, लाज बची है,
तुझपे कन्हैया मेरी, आस टिकी है,
सुना है तुम सुनते हो, हम जेसो की पुकार,
यहाँ पे भी जो हारा, कहाँ जाऊंगा सरकार॥
जिनको सुनाया सोनू (भक्त), अपना फ़साना,
सबने बताया मुझे, तेरा ठिकाना,
सब कुछ छोड़ के आखिर, आया तेरे दरबार,
यहाँ पे भी जो हारा, कहाँ जाऊंगा सरकार॥
Comments